अमृतसर/अटारी:
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के चलते 29 अप्रैल तक अटारी-वाघा बॉर्डर को पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया गया है। इस फैसले का असर अब आम लोगों की जिंदगी और रोज़गार पर साफ नजर आने लगा है।
पिछले चार दिनों में 836 भारतीय नागरिक पाकिस्तान से लौट चुके हैं, जबकि 535 पाकिस्तानी नागरिक भारत छोड़कर वाघा बॉर्डर के रास्ते वापस अपने देश चले गए हैं। हालांकि, अब भी करीब 200 नोरी वीजा धारक वाघा में फंसे हुए हैं, जो भारत लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं।
इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (आईसीपी) पर माहौल बेहद दुखद और वीरान है। रिश्तेदारों का इंतज़ार करते परिवारों की आंखों में चिंता और बेबसी झलक रही है। एक बुजुर्ग महिला ने रोते हुए कहा, “वे सिर्फ़ अपने रिश्तेदारों से मिलने गए थे, उन्हें नहीं पता था कि राजनीति उन्हें इस तरह फंसा देगी।”
व्यापार और मजदूरी पर पड़ा गहरा प्रभाव
अटारी-वाघा बॉर्डर दक्षिण एशिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक गलियारों में से एक रहा है। लेकिन पुलवामा हमले के बाद से दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते लगातार बिगड़ते रहे। पाकिस्तान ने 2019 में भारत से होने वाले सारे व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया था, और अब इस ताजा बंदी से हालात और खराब हो गए हैं।
सीमा पर सामान ढोने वाले कुली, ढाबा मालिक और छोटे व्यापारी जो इस रास्ते पर निर्भर थे, अब नए रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं।
एक ढाबा मालिक ने कहा, “पहले दिन में 5,000 से 7,000 यात्री आते थे, अब हमारे चूल्हे भी ठंडे पड़ गए हैं।”
जनता की अपील
स्थानीय लोग और व्यापारी सरकार से मांग कर रहे हैं कि कम से कम अटारी-वाघा परेड जैसी गतिविधियां फिर से शुरू कराई जाएं ताकि इस क्षेत्र में फिर से चहल-पहल लौट सके।
यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर लिए गए राजनीतिक फैसलों की सबसे बड़ी कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ती है।
