पहलगाम हमला: मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर उठते सवालों के बीच क्या कह रहे हैं जानकार?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया चरमपंथी हमले ने केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया था। इस ऐतिहासिक कदम के पीछे तर्क दिया गया था कि इससे आतंकवाद पर लगाम लगेगी और घाटी में शांति व विकास का नया युग शुरू होगा।

अनुच्छेद 370 हटाने के पीछे सरकार की मंशा

प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय अनुच्छेद 370 को ‘आतंक, भ्रष्टाचार और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला औज़ार’ बताया था। उन्होंने आश्वासन दिया था कि इससे जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा का लोकतंत्र मज़बूत होगा और क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित होगी।

पहलगाम हमला – एक झटका?

लेकिन अब, जब पहलगाम जैसे पर्यटक स्थल पर हमला होता है, तो यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में कश्मीर में सब कुछ सामान्य हो गया है? आतंकवादी गतिविधियों में कमी आई है या ये घटनाएं अब भी चुनौती बनी हुई हैं?जानकारों की राय में…

राजनीतिक और सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि घाटी में शांति के प्रयासों के बावजूद, ‘स्लीपर सेल’ और सीमा पार से घुसपैठ जैसी चुनौतियां अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। पहलगाम जैसे हमले संकेत देते हैं कि उग्रवाद की जड़ें अभी भी मौजूद हैं और उन्हें खत्म करने के लिए केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और रणनीतिक बदलाव की ज़रूरत है।

सरकार की नीति पर उठते सवाल

पहलगाम हमले के बाद विपक्ष और नागरिक समाज के कुछ वर्गों ने केंद्र सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यदि सबकुछ सामान्य होता तो पर्यटक स्थल तक सुरक्षित नहीं होते। साथ ही यह भी पूछा जा रहा है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जिस स्थायित्व की बात की जा रही थी, वह कितना वास्तविक है?


निष्कर्ष:

पहलगाम हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि यह उस बहस को दोबारा जीवित करता है जो साल 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद शुरू हुई थी। क्या वाकई घाटी में स्थायी शांति लौट आई है? या अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है?

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