नई दिल्ली। भारत के नागरिक विमानन नियामक नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने शुक्रवार को एक बयान जारी करते हुए बताया कि इंडिगो एयरलाइंस की एक उड़ान को पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली, जबकि विमान खराब मौसम में भीषण एयर टर्बुलेंस का सामना कर रहा था।
क्या है मामला?
यह घटना 21 मई की है, जब दिल्ली से श्रीनगर जा रही इंडिगो फ्लाइट संख्या 6E-2142 ने पठानकोट के पास अचानक खराब मौसम का सामना किया।
विमान में 227 यात्री सवार थे। खराब मौसम को देखते हुए पायलट ने लाहौर एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क कर पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का प्रयोग करने की अनुमति मांगी, लेकिन उसे स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया गया।
श्रीनगर में सुरक्षित लैंडिंग
डीजीसीए के अनुसार, पायलट और केबिन क्रू ने सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए खराब मौसम के बावजूद विमान को सुरक्षित श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतार दिया।
हालांकि, विमान के आगे के हिस्से (नोज रेडोम) को नुकसान पहुंचा है, लेकिन किसी भी यात्री को कोई चोट नहीं आई है।
डीजीसीए का बयान
डीजीसीए ने इस घटना पर बयान जारी करते हुए कहा:
“इंडिगो विमान 6E-2142 जब पठानकोट के पास उड़ान भर रहा था, उस समय उसे गंभीर टर्बुलेंस का सामना करना पड़ा। चालक दल ने पास के एयरस्पेस से मदद मांगी लेकिन पाकिस्तान की ओर से अनुमति नहीं दी गई। विमान को सुरक्षित श्रीनगर उतार लिया गया और सभी यात्री सुरक्षित हैं।”
क्या है ‘नोज रेडोम’ और क्यों हुआ नुकसान?
नोज रेडोम (Nose Radome) विमान के अगले हिस्से पर स्थित एक कवच होता है, जो रेडार और नेविगेशन सिस्टम को सुरक्षित रखता है। तेज हवा, बर्फ़ या बिजली से इस हिस्से को नुकसान हो सकता है।
DGCA के अनुसार, एयर टर्बुलेंस के कारण ही इस हिस्से में क्षति हुई।
अंतरराष्ट्रीय नियमों का सवाल
भारत के नागरिक उड्डयन विशेषज्ञों ने इस बात पर चिंता जताई है कि खराब मौसम जैसी आपात स्थिति में भी पाकिस्तान ने एयरस्पेस की अनुमति नहीं दी, जो कि इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) के ह्यूमेनिटेरियन सिद्धांतों के खिलाफ है।
इंडिगो और डीजीसीए की अगली कार्रवाई
इंडिगो ने घटना की जांच शुरू कर दी है और डीजीसीए ने तकनीकी निरीक्षण के निर्देश दिए हैं। विमान के नोज रेडोम की मरम्मत की जा रही है और यात्रियों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं होने दी गई।
निष्कर्ष
यह घटना ना सिर्फ एक तकनीकी चुनौती थी, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्गों की मानवीय जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़े हुए हैं। एयर टर्बुलेंस जैसी स्थितियों में सहयोग से इनकार करना आने वाले समय में राजनयिक मुद्दा बन सकता है।
